आत्मविश्वास
हर सफलता की नींव है। जानिए छोटे बदलावों से आत्मविश्वास बढ़ाने के व्यावहारिक
उपाय, जो आपकी सोच, व्यक्तित्व और जीवन को नई दिशा देंगे।
🏆 आत्मविश्वास क्या है और क्यों ज़रूरी है
आत्मविश्वास
का मतलब है — खुद पर भरोसा करना। यह वह शक्ति है जो हमें हर चुनौती का सामना करने की
हिम्मत देती है।
चाहे वह इंटरव्यू देना हो, लोगों के बीच बोलना हो, या कोई नया काम शुरू करना — अगर आत्मविश्वास है, तो आधी जीत पहले ही तय हो जाती है।
आत्मविश्वास
हमें न सिर्फ़ बाहरी दुनिया में सफल बनाता है, बल्कि अंदर से मजबूत भी करता है। यह हमारे निर्णय लेने, संबंध बनाने और सपनों को साकार करने की क्षमता को बढ़ाता
है।
आत्म-संदेह
(Self-Doubt) के कारण —
क्या आपने
कभी किसी काम को शुरू करने से पहले ये सोचा है —
“पता नहीं मैं कर पाऊँगा या नहीं…”
“लोग क्या कहेंगे अगर मुझसे गलती हो गई तो?”
अगर हाँ —
तो आपने Self-Doubt महसूस किया है।
यानी खुद पर भरोसा न होना, अपनी क्षमता, निर्णय या योग्यता पर शक करना।
आत्म-संदेह
ऐसा “अदृश्य दुश्मन” है, जो चुपचाप हमारे अंदर बैठ जाता है
और हमारी सफलता, खुशी, और आत्मविश्वास को धीरे-धीरे खत्म कर देता है।
चलिए, इसे गहराई से समझते हैं — आखिर आत्म-संदेह क्यों पैदा होता है, और कैसे हम इसे पहचान सकते हैं।
🧩 1. अतीत की असफलताएँ (Past Failures)
हमारे
दिमाग में हर असफलता एक निशान छोड़ जाती है।
जब हम किसी काम में विफल होते हैं — जैसे किसी
परीक्षा में फेल होना, किसी इंटरव्यू में रिजेक्ट होना, या किसी रिश्ते का टूट जाना — तो मन में एक आवाज़ बन जाती
है:
“मैं तो हमेशा हारता हूँ।”
यह आवाज़
धीरे-धीरे हमारी पहचान बन जाती है।
हम नए अवसरों से डरने लगते हैं, और सोचते हैं — “अगर फिर से असफल हो गया तो?”
उदाहरण:
राहुल ने एक बार बिज़नेस शुरू किया लेकिन नुकसान हुआ।
अगली बार जब उसके पास फिर एक अच्छा मौका आया, तो उसने कदम पीछे खींच लिया, क्योंकि उसके दिमाग में वही पुराना अनुभव घूमता रहा — “पिछली बार भी मैं फेल
हुआ था।”
असल में असफलता ने नहीं, उस असफलता की याद ने उसे रोक दिया।
👉 सीख: असफलता सबक है, पहचान नहीं।
अगर हम हर गिरावट से डरेंगे, तो आगे कभी चल नहीं पाएँगे।
🪞 2. दूसरों से तुलना करना (Comparison)
हम अक्सर
अपनी तुलना दूसरों से करते हैं —
दोस्त की नौकरी हमसे बेहतर, पड़ोसी की गाड़ी बड़ी, या सोशल मीडिया पर सबकी “परफेक्ट
लाइफ”।
धीरे-धीरे
हम सोचने लगते हैं:
“मैं तो कुछ खास नहीं हूँ।”
“वो मुझसे ज़्यादा सफल है।”
इस तुलना
का जहर आत्म-संदेह को जन्म देता है।
क्योंकि जब हम दूसरों की उपलब्धियों से अपने जीवन का
मापदंड तय करते हैं, तो अपनी खूबियाँ नज़र ही नहीं
आतीं।
उदाहरण:
नेहा हर रोज़ सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करती थी।
वो देखती कि उसकी कॉलेज की सहेलियाँ विदेश घूम रही
हैं, बड़ी कंपनियों में काम कर रही हैं।
धीरे-धीरे उसने खुद को कमतर समझना शुरू कर दिया —
जबकि नेहा भी उतनी ही काबिल थी, बस उसकी यात्रा थोड़ी अलग थी।
👉 सीख: दूसरों से तुलना करना अपने
आत्मविश्वास को धीरे-धीरे ज़हर देने जैसा है।
हर इंसान का रास्ता और गति अलग होती है — बस चलते
रहिए।
🧱 3. बचपन या परिवेश से मिले नकारात्मक अनुभव (Negative
Conditioning)
हमारे
बचपन के अनुभव हमारी मानसिकता की जड़ें बनाते हैं।
अगर हमें बचपन में बार-बार कहा गया —
“तुमसे नहीं होगा”,
“तुम बहुत कमजोर हो”,
“हमेशा गलती करते हो” —
तो ये बातें हमारे अवचेतन मन में “सत्य” बन जाती हैं।
बड़े होकर
हम उन शब्दों को सच मानने लगते हैं, और हर चुनौती में खुद पर शक करते
हैं।
उदाहरण:
आरव के स्कूल में टीचर अक्सर कहती थीं, “तू तो कभी गणित नहीं सीख पाएगा।”
आज जब भी आरव कोई नई चीज़ सीखने की कोशिश करता है, तो मन में वही वाक्य गूंजता है — “मैं नहीं कर पाऊँगा।”
उसका आत्म-संदेह उसकी सोच का हिस्सा बन गया।
👉 सीख: पुराने शब्द, पुराने घाव हैं — लेकिन अब आप बच्चे नहीं।
आज आप खुद तय कर सकते हैं कि अपने बारे में क्या
मानना है।
💭 4.
Overthinking – ज़रूरत से ज़्यादा सोचना
आत्म-संदेह
का सबसे बड़ा कारण है — Overthinking।
हम किसी काम को करने से पहले सैकड़ों बार सोचते हैं:
“अगर मैं असफल हो गया तो?”
“अगर लोग हँसेंगे तो?”
“अगर मैंने गलत निर्णय ले लिया तो?”
इस
“अगर-लेकिन” की जाल में हम फँस जाते हैं और कदम उठाने की हिम्मत ही नहीं कर पाते।
उदाहरण:
स्मिता को एक शानदार जॉब का ऑफर मिला था, लेकिन शहर बदलना पड़ता।
वह सोचती रही — “नया माहौल कैसा होगा?”, “मैं अकेली कैसे रहूँगी?”, “अगर नहीं संभला तो?”
इतना सोचते-सोचते उसने ऑफर ठुकरा दिया — और बाद में
पछताया।
👉 सीख: ज़रूरत से ज़्यादा सोचने से clarity नहीं आती, बल्कि confusion बढ़ता है।
कभी-कभी बस “करने की हिम्मत” ही सबसे सही निर्णय होती है।
🎭 5. दूसरों की राय पर ज़्यादा निर्भर रहना (Approval
Seeking)
हम अक्सर
चाहते हैं कि हमारे हर फैसले को लोग “सही” कहें।
हम सोचते हैं कि अगर दूसरों ने सराहा तो ही हमारा
निर्णय सही है।
लेकिन जब
दूसरों से हमें वैसी प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो हमारे भीतर आत्म-संदेह जाग उठता
है।
हम सोचते हैं — “शायद मैं गलत हूँ।”
उदाहरण:
अमित ने एक नया ब्लॉग शुरू किया।
शुरुआती हफ्ते में उसे कम views मिले, दोस्तों ने भी खास ध्यान नहीं
दिया।
उसने सोचा — “शायद मैं लिखने लायक नहीं हूँ।”
और ब्लॉग बंद कर दिया, जबकि उसे बस थोड़ा और समय और निरंतरता चाहिए थी।
👉 सीख: अपनी मंज़िल की मंजूरी आपको दूसरों
से नहीं, खुद से चाहिए।
दुनिया तब तक यक़ीन नहीं करेगी, जब तक आप खुद पर यक़ीन नहीं करते।
🧍♂️ 6. तैयारी का अभाव (Lack of Preparation)
कई बार
आत्म-संदेह का कारण असल में अयोग्यता नहीं, बल्कि अधूरी तैयारी होती है।
जब हम ठीक से तैयार नहीं होते, तो हमें खुद पर भरोसा नहीं रहता।
उदाहरण:
रीना को एक presentation देनी थी।
उसने तैयारी अधूरी की और मंच पर पहुँचते ही nervous हो गई।
अब उसे लगा कि “मुझमें आत्मविश्वास की कमी है” —
लेकिन असल में समस्या तैयारी की थी, न कि आत्मविश्वास की।
👉 सीख: तैयारी आत्मविश्वास की जड़ है।
जितनी अच्छी तैयारी होगी, आत्म-संदेह उतना कम होगा।
🕳️ 7. नकारात्मक सोच और वातावरण (Negative
Environment)
अगर हम
ऐसे लोगों या माहौल में रहते हैं जहाँ हर चीज़ की आलोचना होती है —
“ये गलत है”, “वो नहीं चलेगा”, “तुमसे नहीं होगा” —
तो धीरे-धीरे हमारी सोच भी वैसी बन जाती है।
उदाहरण:
सौरभ का दोस्त हर बात में मना करता —
“बिजनेस risky है”, “लोग धोखा देंगे”, “नौकरी ही सुरक्षित है।”
धीरे-धीरे सौरभ भी खुद पर शक करने लगा।
उसने कभी कोशिश ही नहीं की।
👉 सीख: आपका वातावरण आपकी ऊर्जा तय करता
है।
सकारात्मक लोगों के बीच रहिए, जहाँ “हो सकता है” की सोच हो।
🫀 8. परफेक्शनिज़्म (Perfectionism)
बहुत से
लोग इसलिए आत्म-संदेह में रहते हैं क्योंकि वे “100% सही” करना चाहते हैं।
अगर कुछ थोड़ा भी कम हो गया, तो उन्हें लगता है — “मैं फेल हो गया।”
उदाहरण:
कविता को Drawing बहुत पसंद थी, लेकिन जब उसने अपनी पहली painting बनाई और कुछ कमी महसूस हुई, तो उसने सोचा — “मैं तो अच्छी artist नहीं हूँ।”
धीरे-धीरे उसने painting छोड़ दी।
👉 सीख: आत्मविश्वास परफेक्ट होने से नहीं, प्रयास करने से बढ़ता है।
गलती करना सीखने का हिस्सा है, शर्म का नहीं।
🔍 9. अज्ञात का भय (Fear of the Unknown)
नया कदम
उठाना हमेशा डर पैदा करता है — क्योंकि हम परिणाम नहीं जानते।
लेकिन जब यह डर ज़्यादा हावी हो जाता है, तो हम कोशिश करने से पहले ही हार मान लेते हैं।
उदाहरण:
विकास को विदेश में पढ़ाई का मौका मिला, पर उसने सोचा — “अगर मैं वहाँ adjust नहीं कर पाया तो?”
उसने मौका छोड़ दिया — और बाद में जब उसके दोस्त वहाँ
सफल हुए, तो उसे अहसास हुआ कि उसका डर ही
उसका सबसे बड़ा दुश्मन था।
👉 सीख: अज्ञात से डरना स्वाभाविक है, लेकिन उस डर को जीतने के लिए ही आत्मविश्वास जरूरी है।
आत्म-संदेह
से निकलने का पहला कदम: पहचानना
आत्म-संदेह
को हराने की शुरुआत तब होती है जब आप उसे पहचान लेते हैं।
क्योंकि जब तक हम यह मानते हैं कि “मैं तो ऐसा ही
हूँ”, तब तक बदलाव संभव नहीं।
हर बार जब
मन में ये आवाज़ आए —
“पता नहीं मैं कर पाऊँगा या
नहीं...”
तो खुद से कहिए —
“हाँ, मैं कर सकता हूँ। अगर दूसरों ने
किया है, तो मैं भी कर सकता हूँ।”
याद रखिए
—
आत्म-संदेह आपको रोकता है, और आत्मविश्वास आपको उड़ान देता है।
बस उड़ने का निर्णय आपको ही लेना है।
🌟 आत्मविश्वास बढ़ाने के 7 आसान तरीके (With Real-Life Examples)
क्या आपने
कभी यह महसूस किया है कि आपके अंदर कुछ करने की क्षमता तो है, लेकिन खुद पर भरोसा नहीं है?
जैसे —
“लोग क्या कहेंगे?”
“अगर असफल हो गया तो?”
“मैं इतना अच्छा नहीं हूँ...”
यही वो
बातें हैं जो आत्मविश्वास (Self-Confidence) को धीरे-धीरे खत्म करती हैं।
लेकिन
सच्चाई ये है कि आत्मविश्वास कोई जादू नहीं —
यह एक कौशल (Skill) है, जिसे कोई भी व्यक्ति अभ्यास से
विकसित कर सकता है।
चलिए, जानते हैं — वो 7 आसान और व्यवहारिक तरीके, जिनसे आप अपना आत्मविश्वास मज़बूत बना सकते हैं 👇
1️⃣ छोटे-छोटे लक्ष्य तय करें और पूरे करें
“Confidence तब नहीं आता जब आप बड़ी चीजें करते हैं,
Confidence तब आता है जब आप छोटे कामों को
ईमानदारी से पूरा करते हैं।”
कई लोग एक
साथ बहुत बड़े लक्ष्य बना लेते हैं, और जब उन्हें पाने में कठिनाई होती
है, तो निराश हो जाते हैं।
लेकिन सच्चाई यह है कि आत्मविश्वास छोटे कदमों की जीत से बनता है।
✅ उदाहरण:
रवि ने तय
किया कि वह हर दिन सुबह 6 बजे उठेगा और 10 मिनट व्यायाम करेगा।
पहले दिन मुश्किल लगा, दूसरे दिन भी आलस आया… लेकिन उसने हार नहीं मानी।
एक हफ्ते में उसने देखा — वह सुबह उठने में सफल हो
रहा है!
बस, उसी छोटे से अनुशासन ने उसके भीतर
एक नई ऊर्जा पैदा कर दी।
अब वह आत्मविश्वास से कह सकता था — “मैं जो ठान लूँ, वो कर सकता हूँ।”
💡 सीख:
- बड़े लक्ष्य को छोटे हिस्सों
में बाँटिए।
- हर छोटी उपलब्धि को
सेलिब्रेट
कीजिए।
- जब आप बार-बार कुछ पूरा करते
हैं, तो आपके दिमाग को यह विश्वास
होने लगता है — “मैं सक्षम हूँ।”
2️⃣ Positive
Self-Talk अपनाइए – खुद से दोस्ताना बातें
कीजिए
हम दिन भर
में सबसे ज़्यादा किससे बात करते हैं?
खुद से।
अगर वो
बातचीत नकारात्मक हो —
“मैं बेकार हूँ”, “मैं फेल हो जाऊँगा”, “लोग मुझे पसंद नहीं करेंगे” —
तो यह आत्मविश्वास को खत्म कर देती है।
लेकिन अगर
वही बातें सकारात्मक हों —
“मैं कर सकता हूँ”, “मैं कोशिश कर रहा हूँ”, “मैं दिन-ब-दिन बेहतर बन रहा हूँ” —
तो यह आत्मविश्वास को भीतर से मजबूत करती हैं।
✅ उदाहरण:
रीमा को Public
Speaking का डर था।
हर बार जब वह मंच पर जाती, तो मन कहता — “तू तो हकलाएगी”, “लोग हँसेंगे।”
एक दिन उसने तय किया कि अब वो खुद से बात बदलेगी।
उसने हर सुबह आईने के सामने कहा —
“मैं आत्मविश्वासी हूँ। मैं अपनी
बात साफ़-साफ़ कह सकती हूँ।”
कुछ हफ्तों बाद उसने देखा — अब वह घबराती नहीं, बल्कि मुस्कुराकर बोलती है।
💡 सीख:
आपका मन
वही मानता है जो आप बार-बार उसे बताते हैं।
इसलिए Self-Talk को Positive बनाइए —
हर दिन खुद से तीन Positive वाक्य ज़रूर बोलिए।
3️⃣ नई चीज़ें सीखते रहिए (Continuous
Learning)
आत्मविश्वास
का सबसे बड़ा स्रोत है — ज्ञान (Knowledge)।
जब हम किसी विषय को समझते हैं, जब हम नई चीज़ें सीखते हैं, तो हमारे अंदर एक भरोसा आता है —
“मुझे पता है, मैं यह कर सकता हूँ।”
✅ उदाहरण:
मोहित को
हमेशा Presentation देने में डर लगता था।
उसे लगता था कि “मैं अंग्रेज़ी में अच्छा नहीं हूँ”, “लोग मेरी बात समझेंगे नहीं।”
उसने YouTube पर Public Speaking की छोटी-छोटी videos देखनी शुरू कीं, mirror
practice की, और 2 हफ्ते तक रोज़ 10 मिनट बोलने का अभ्यास किया।
एक महीने बाद वही मोहित अपनी कंपनी की मीटिंग में
सबसे बेहतर बोलने वालों में से एक था।
💡 सीख:
- हर दिन 15-20 मिनट कुछ नया सीखिए — कोई skill,
कोई concept,
कोई language।
- सीखना आपके अंदर
clarity लाता है, और clarity हमेशा
confidence को जन्म देती है।
4️⃣ Comfort
Zone से बाहर निकलें
“जो इंसान अपने Comfort
Zone में रहता है,
वो अपनी असली ताकत को कभी नहीं जान पाता।”
आत्मविश्वास
तब बढ़ता है जब आप अपने डर के बावजूद आगे बढ़ते हैं।
हर बार जब आप कुछ नया करते हैं — नई जगह जाते हैं, नए लोगों से बात करते हैं, नई जिम्मेदारी लेते हैं —
आपका अंदरूनी डर थोड़ा कम होता है और आत्मविश्वास
थोड़ा बढ़ जाता है।
✅ उदाहरण:
अंकिता को
Stage
Fear था।
वह हमेशा Presentation से बचती
थी।
एक दिन उसने खुद को चुनौती दी —
“मैं आज बस 2 मिनट बोलूँगी, चाहे जो हो जाए।”
पहले दिन घबराहट हुई, पर उसने बोल लिया।
दूसरे हफ्ते उसने 5 मिनट बोला, फिर 10 मिनट…
तीन महीने बाद वही अंकिता Seminar में मुख्य वक्ता बनी!
💡 सीख:
- हर हफ्ते एक ऐसा काम करें
जिससे थोड़ा डर लगता है।
- धीरे-धीरे आपका “Comfort
Zone” बड़ा होता जाएगा, और डर छोटा।
5️⃣ अच्छे लोगों का साथ चुनिए (Positive
Circle)
आप जिन
लोगों के साथ ज़्यादा वक्त बिताते हैं, आप धीरे-धीरे वैसे ही बन जाते हैं।
अगर आप ऐसे माहौल में हैं जहाँ लोग हमेशा शिकायत करते
हैं, दूसरों को नीचा दिखाते हैं —
तो आपका आत्मविश्वास भी नीचे गिरने लगता है।
लेकिन अगर
आपके आसपास प्रेरणादायक, सकारात्मक और सपने देखने वाले लोग
हैं —
तो आप भी ऊँचा सोचने लगते हैं।
✅ उदाहरण:
संदीप दो
दोस्तों के साथ कॉलेज जाता था — एक हमेशा कहता, “ये मुश्किल है”, दूसरा कहता, “चल कोशिश करते हैं।”
धीरे-धीरे संदीप ने देखा — पहले दोस्त के साथ रहने से
वो खुद डरने लगता है, और दूसरे के साथ रहने से जोश आ
जाता है।
अब उसने तय किया कि वो हमेशा Positive लोगों के बीच रहेगा।
💡 सीख:
- अपने Circle
को समझदारी से चुनिए।
- ऐसे लोगों के साथ रहिए जो
आपको encourage करें, discourage नहीं।
- और अगर आपके पास कोई Positive
व्यक्ति नहीं है — तो किताबें, वीडियो और पॉडकास्ट आपके नए “Positive
Friends” बन सकते हैं।
6️⃣ अपनी उपलब्धियाँ याद रखिए (Celebrate
Your Wins)
हम अकसर
अपनी असफलताओं को याद रखते हैं, लेकिन अपनी जीतों को भूल जाते हैं।
जब भी कोई गलती होती है, हम सोचते हैं — “मैं फेल हो गया।”
लेकिन जब कुछ सही करते हैं, तो आगे बढ़ जाते हैं, बिना जश्न मनाए।
धीरे-धीरे
हमारा दिमाग़ सिर्फ़ कमियों पर ध्यान देने लगता है, और हमें लगता है — “मैं कुछ खास नहीं हूँ।”
जबकि सच्चाई यह है कि हर इंसान के पास सैकड़ों छोटी
जीतें होती हैं।
✅ उदाहरण:
रोहन ने
एक दिन अपनी डायरी में लिखा —
“आज मैंने किसी पर गुस्सा नहीं
किया।”
“आज मैंने एक नया word सीखा।”
“आज मैंने देर तक काम किया।”
हर हफ्ते जब वह अपनी डायरी पढ़ता, तो उसे एहसास होता कि वह लगातार प्रगति कर रहा है।
यह एहसास उसके आत्मविश्वास का ईंधन बन गया।
💡 सीख:
7️⃣ अपने शरीर और मन का ख्याल रखिए (Healthy
Lifestyle = Healthy Confidence)
आत्मविश्वास
सिर्फ़ दिमाग़ का खेल नहीं, यह शरीर से भी जुड़ा हुआ है।
जब आप थके, तनावग्रस्त या अस्वस्थ होते हैं —
तो आत्मविश्वास अपने आप कम हो जाता है।
सही
खानपान, पर्याप्त नींद और थोड़ी-सी कसरत —
ये सिर्फ़ शरीर के लिए नहीं, बल्कि आपके आत्मविश्वास के लिए भी ज़रूरी हैं।
✅ उदाहरण:
अजय रातभर
काम करता, कम सोता और दिन में हमेशा थका
रहता।
उसे लगता कि उसकी energy खत्म हो गई है।
जब उसने नियमित व्यायाम और meditation शुरू किया, तो न सिर्फ़ उसका शरीर बेहतर हुआ, बल्कि अब वह बैठकों में ज़्यादा स्पष्ट, confident
और खुश दिखता था।
💡 सीख:
- हर दिन 20-30 मिनट अपने शरीर के लिए दीजिए।
- योग, वॉक या कोई भी हल्का व्यायाम करें।
- पर्याप्त नींद लीजिए — एक थका
हुआ दिमाग कभी आत्मविश्वासी नहीं होता।
💬 Body
Language और Positive
Affirmations की भूमिका
आपका शरीर, आपके मन की भाषा बोलता है।
सीधे खड़े रहिए, आँखों में आत्मविश्वास रखिए, और मुस्कुराना मत भूलिए।
👉 Body
language यह संदेश देती है कि “मैं तैयार
हूँ” — और जब शरीर ऐसा बोलता है, मन भी मान लेता है।
👉 Positive
affirmations जैसे —
“मैं अपने जीवन का नियंत्रण रखता हूँ।”
“मैं हर परिस्थिति में मजबूत हूँ।”
“मुझे खुद पर भरोसा है।”
— इन्हें रोज़ सुबह बोलें, और देखिए कैसे आपका दिमाग़ इन पर विश्वास करने लगता है।
🌱 Tip: “Body
Language बोलती है आत्मविश्वास की भाषा”
कभी गौर
किया है — आत्मविश्वासी लोग चलते कैसे हैं, बोलते कैसे हैं?
उनकी चाल में दृढ़ता होती है, उनकी नज़रें सीधी होती हैं, और वे मुस्कुराकर बात करते हैं।
अगर आप
अपना आत्मविश्वास बढ़ाना चाहते हैं, तो Body
Language से शुरुआत करें।
💡 अभ्यास:
- सीधा खड़े रहिए, कंधे पीछे।
- आँखों में देखकर बात कीजिए।
- मुस्कुराइए — क्योंकि मुस्कान
अपने आप मनोबल बढ़ाती है।
- धीरे और साफ़ बोलिए — जल्दी
में बोलने से घबराहट झलकती है।
✅ उदाहरण:
प्रिया को
नौकरी के इंटरव्यू में बहुत घबराहट होती थी।
उसने Body Language पर काम
किया —
आईने के सामने खड़ी होकर posture और eye-contact की practice की।
तीसरे इंटरव्यू में वह confident दिखी और नौकरी मिल गई।
🪞 निष्कर्ष – आत्मविश्वास अभ्यास से आता है, जन्म से नहीं
आत्मविश्वास
किसी के पास “ready-made” नहीं आता।
यह हर दिन थोड़ा-थोड़ा बनता है — आपकी सोच, आपके कर्म, और आपके अनुभवों से।
हर बार जब
आप डर के बावजूद कोई कदम उठाते हैं,
हर बार जब आप अपनी गलती से सीखते हैं,
हर बार जब आप खुद से कहते हैं — “मैं कर सकता हूँ”,
तो आप अपने आत्मविश्वास की नींव और मजबूत कर रहे होते
हैं।