Active Listening (सुनने की कला) : Hearing vs Listening: The Difference That Defines Relationships and Success”

प्रस्तावना : मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसका जीवन संवाद पर आधारित है। संवाद केवल बोलने से ही नहीं, बल्कि सुनने से भी पूर्ण होता है। अक्सर लोग बोलने की कला (Art of Speaking) सीखने पर ध्यान देते हैं, लेकिन सुनने की कला (Active Listening) को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

याद रखिए – "बोलना एक कौशल है, लेकिन सुनना एक गुण है।"

अच्छा श्रोता बनने से केवल रिश्ते मजबूत होते हैं, बल्कि समझ बढ़ती है, विवाद कम होते हैं और जीवन की गुणवत्ता सुधरती है।

Hearing vs Listening: The Difference That Defines Relationships and Success” “सुनना और ध्यान से सुनना: फर्क जो रिश्तों और सफलता को तय करता है”


सुनने की कला क्या है?

सुनने की कला का अर्थ है

किसी भी व्यक्ति की बात को पूरे ध्यान, एकाग्रता, समझ और संवेदनशीलता के साथ ग्रहण करना। यह केवल कान से सुनना नहीं है, बल्कि मन और हृदय से सुनना है।

साधारण सुनना (Hearing)केवल ध्वनि सुन लेना।

सक्रिय सुनना (Active Listening)बात को समझना, महसूस करना और उसके भावों को ग्रहण करना।


सुनने की कला के मुख्य तत्व

  1. ध्यान केंद्रित करना (Focus)
    • मोबाइल, टीवी या अन्य व्यवधानों से दूर रहकर पूरी तरह बोलने वाले पर ध्यान देना।
  2. आँखों से संपर्क (Eye Contact)
    • बातचीत के दौरान आँखों में देखकर सुनना सम्मान और गंभीरता दर्शाता है।
  3. शारीरिक भाषा (Body Language)
    • सिर हिलाना, मुस्कुराना या सहमति के छोटे संकेत देना।
  4. बीच में बाधा डालना (No Interruption)
    • वक्ता को बिना टोके उसकी पूरी बात कहने देना।
  5. स्पष्टता के लिए प्रश्न पूछना (Clarification)
    • यदि कुछ समझ आए तो शिष्टता से प्रश्न करना।
  6. भावनाओं को समझना (Empathy)
    • केवल शब्द नहीं, बल्कि भावनाओं और इरादों को समझना।

सुनने की कला का महत्व

1. व्यक्तिगत जीवन में

  • पति-पत्नी के रिश्ते बेहतर बनते हैं।
  • माता-पिता और बच्चों के बीच भरोसा बढ़ता है।
  • मित्रता मजबूत होती है।

2. पेशेवर जीवन में

  • मैनेजर कर्मचारियों को सुनकर बेहतर फैसले लेता है।
  • शिक्षक विद्यार्थियों को सुनकर उनकी जरूरत समझते हैं।
  • डॉक्टर मरीज को ध्यान से सुनकर सही इलाज दे पाता है।

3. समाज में

  • गलतफहमियाँ और विवाद कम होते हैं।
  • सामूहिक कार्य में एकता और सहयोग बढ़ता है।
  • नेतृत्व की गुणवत्ता निखरती है।

सुनने की कला में आने वाली बाधाएँ

  1. पूर्वाग्रह (Prejudice)पहले से ही धारणा बना लेना।
  2. ध्यान भटकना (Distraction)मोबाइल, टीवी या मन में अन्य विचार।
  3. जल्दबाज़ी (Haste)बीच में टोकर अपनी राय देना।
  4. अहम (Ego)यह मान लेना कि मेरी सोच ही सही है।
  5. धैर्य की कमी (Lack of Patience)वक्ता की पूरी बात सुनने से पहले निष्कर्ष निकाल लेना।

सुनने की कला विकसित करने के उपाय

  1. एकाग्रता का अभ्यास करेंप्रतिदिन 10 मिनट ध्यान लगाकर दूसरों की बात सुनें।
  2. खुले प्रश्न पूछें – "क्या आप विस्तार से बता सकते हैं?" जैसे प्रश्न।
  3. नोट्स बनाना सीखेंमहत्वपूर्ण बातों को लिख लेना।
  4. भावनाओं को समझेंशब्दों के साथ भावनाओं को भी पकड़ें।
  5. सकारात्मक प्रतिक्रिया दें – "हाँ, मैं समझ रहा हूँ" जैसे शब्द प्रयोग करें।

व्यावहारिक जीवन के उदाहरण

उदाहरण 1: पति-पत्नी का रिश्ता

यदि पत्नी दिनभर की बातें पति को सुनाना चाहती है और पति मोबाइल पर ध्यान लगाए बैठा है, तो पत्नी को लगता है कि उसकी बात का महत्व नहीं। इसके उलट, अगर पति ध्यानपूर्वक सुनता है, बीच-बीच में प्रतिक्रिया देता हैतो रिश्ता गहरा होता है।

उदाहरण 2: ऑफिस की मीटिंग

एक मैनेजर मीटिंग में केवल अपनी बात कहे और कर्मचारियों की सुने तो टीम में असंतोष बढ़ेगा। लेकिन यदि वह हर सदस्य की राय ध्यान से सुनता है, तो बेहतर निर्णय होंगे और टीम का मनोबल बढ़ेगा।

उदाहरण 3: शिक्षक और विद्यार्थी

यदि शिक्षक केवल लेक्चर दे और विद्यार्थियों के सवाल सुने तो शिक्षा अधूरी रह जाती है। लेकिन अच्छे शिक्षक प्रश्नों को सुनते हैं, समझते हैं और फिर उत्तर देते हैं। इससे विद्यार्थियों का आत्मविश्वास बढ़ता है।

उदाहरण 4: ग्राहक सेवा (Customer Care)

ग्राहक जब अपनी समस्या बताता है और कॉल-सेंटर एजेंट ध्यान से सुनकर समाधान देता है, तो कंपनी की छवि सकारात्मक बनती है।


सुनने की कला और भारतीय परंपरा

भारतीय संस्कृति में सुनने को विशेष महत्व दिया गया है।

  • श्रवण कुमार की कथा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
  • हमारे वेद-पुराण "श्रुति" कहलाते हैं, जिनका अर्थ हैजो सुना गया।
  • गुरु-शिष्य परंपरा भी सुनने की कला पर आधारित थी।

सुनने की कला के लाभ

  1. रिश्ते मजबूत बनते हैं।
  2. गलतफहमियाँ दूर होती हैं।
  3. ज्ञान और समझ बढ़ती है।
  4. नेतृत्व क्षमता निखरती है।
  5. तनाव और विवाद कम होते हैं।

एक छोटी कहानी (प्रेरक उदाहरण)

कहानी – "सुनने की ताकत"

एक बार एक राजा अपने मंत्री से नाराज़ था। राजा ने निर्णय ले लिया कि वह उसे पद से हटा देगा। मंत्री ने निवेदन किया – "महाराज, अंतिम बार मेरी बात सुन लीजिए।"

राजा ने कुछ समय निकालकर उसकी बात ध्यान से सुनी। मंत्री ने बताया कि उसका निर्णय केवल राज्यहित में था, व्यक्तिगत स्वार्थ से नहीं।

राजा ने जब ध्यान से सुना, तो उसे मंत्री की नीयत समझ में आई और उसने मंत्री को पद से नहीं हटाया।

सीख: अगर राजा ने सुने बिना निर्णय ले लिया होता, तो राज्य को एक ईमानदार मंत्री खोना पड़ता।


सुनने की कला (Active Listening) on Telephone

आज के युग में टेलीफोन संचार का सबसे बड़ा माध्यम हैचाहे वह व्यक्तिगत बातचीत हो, व्यापारिक लेन-देन हो, ग्राहक सेवा हो या ऑफिस की मीटिंग।

फोन पर बातचीत में सबसे बड़ी चुनौती होती हैसामने वाले का चेहरा और शारीरिक भाषा दिखाई नहीं देती। ऐसे में केवल सुनने की कला (Active Listening) ही बातचीत को सार्थक बनाती है।


टेलीफोन पर सुनने की कला क्यों ज़रूरी है?

  1. गलतफहमी से बचावफोन पर अक्सर लोग जल्दबाज़ी में सुनते हैं और अर्थ गलत निकाल लेते हैं।
  2. समस्या समाधानग्राहक सेवा, कॉल सेंटर या हेल्पलाइन में सही समाधान तभी मिलता है जब एजेंट ध्यान से सुने।
  3. रिश्तों में मजबूतीपरिवार या दोस्त जब फोन पर अपनी बातें साझा करते हैं, तो ध्यान से सुनने पर भरोसा और अपनापन बढ़ता है।
  4. प्रोफेशनल सफलताबिज़नेस कॉल में ध्यानपूर्वक सुनना सफलता की कुंजी है।

टेलीफोन पर सक्रिय सुनने के मुख्य सिद्धांत

1. पूरी एकाग्रता

  • फोन पर बात करते समय अन्य कामों में उलझें।
  • लिखते-लिखते या कंप्यूटर पर टाइप करते-करते बात सुनना, ध्यान भटका देता है।

2. बीच में टोकें

  • सामने वाले को पूरी बात कहने दें।
  • बीच में रोकने से वह महसूस करेगा कि उसकी बात का मूल्य नहीं है।

3. नोट्स बनाएं

  • खासकर प्रोफेशनल कॉल में ज़रूरी बिंदु लिखें।
  • इससे आगे की बातचीत और निर्णय स्पष्ट होंगे।

4. आवाज़ के उतार-चढ़ाव को समझें

  • टेलीफोन पर चेहरे के भाव नहीं दिखते, लेकिन आवाज़ का टोन भावनाओं को दर्शाता है।
  • गुस्सा, दुख, उत्साह या खुशीसब टोन से समझा जा सकता है।

5. प्रतिक्रिया (Feedback) दें

  • बीच-बीच में "जी", "हाँ बिल्कुल", "मैं समझ रहा हूँ" जैसे शब्द प्रयोग करें।
  • इससे वक्ता को लगेगा कि आप ध्यान से सुन रहे हैं।

6. स्पष्टता के लिए प्रश्न करें

  • यदि कोई बिंदु समझ आए तो शांति से पूछें

  • "
    क्या आप इसे दोबारा समझा सकते हैं?"

7. कॉल के अंत में सारांश दें

  • बातचीत का छोटा-सा सारांश दोहराएँ

"तो आपका मतलब है कि…?"

  • इससे गलतफहमियाँ दूर होंगी।

टेलीफोन पर सुनने की कला में आने वाली बाधाएँ

  1. नेटवर्क की समस्याबीच-बीच में आवाज़ कटना।
  2. बैकग्राउंड शोरट्रैफिक, टीवी या ऑफिस का शोर ध्यान भटकाता है।
  3. मल्टीटास्किंगफोन पर बात करते समय अन्य काम करना।
  4. जल्दबाज़ीसामने वाले की बात पूरी सुने बिना निर्णय लेना।

व्यावहारिक उदाहरण

(1) ग्राहक सेवा में

एक ग्राहक बैंक को फोन करता है कि उसका एटीएम कार्ड ब्लॉक हो गया है।

  • यदि एजेंट ध्यान से नहीं सुनता और जल्दी-जल्दी जवाब देता है, तो ग्राहक की समस्या अधूरी रह जाएगी।
  • लेकिन अगर एजेंट ध्यान से सुनता है, बीच-बीच में पुष्टि करता है, और सभी सवालों को नोट कर समाधान देता है, तो ग्राहक संतुष्ट होगा।

(2) ऑफिस मीटिंग कॉल में

एक मैनेजर अपनी टीम से फोन पर चर्चा कर रहा है।

  • यदि वह केवल खुद बोलता है और टीम के सुझाव सुने, तो काम में गलतियाँ होंगी।
  • लेकिन यदि वह टीम की राय ध्यान से सुने और सारांश दे, तो बेहतर निर्णय होंगे।

(3) व्यक्तिगत जीवन में

माँ अपने बेटे को फोन पर दिनभर की बातें बताती है।

  • यदि बेटा मोबाइल स्क्रॉल करते-करते "हाँ-हाँ" कहता रहे, तो माँ को लगेगा कि उसकी बात की कद्र नहीं।
  • लेकिन यदि बेटा ध्यानपूर्वक सुने और जवाब दे, तो माँ को खुशी और सुकून मिलेगा।

सुनने की कला विकसित करने के उपाय (टेलीफोन पर विशेष)

  1. कॉल करते समय शांत वातावरण चुनें।
  2. हेडफोन या इयरफोन का प्रयोग करें ताकि आवाज़ साफ आए।
  3. बात करते समय अनावश्यक नोटिफिकेशन या अलर्ट बंद करें।
  4. बातचीत के दौरान नोटबुक रखें और महत्वपूर्ण बातें लिखें।
  5. हर कॉल के बाद सोचे – "मैंने कितना ध्यान से सुना?"

📞 Telephone Active Listening – Practical Checklist

Do’s (क्या करें)

  • 📍 कॉल से पहले शांत वातावरण चुनें।
  • 🎧 इयरफोन/हेडफोन का प्रयोग करें ताकि आवाज़ साफ सुनाई दे।
  • 📝 बातचीत के दौरान ज़रूरी बिंदु नोट करें।
  • 👂 सामने वाले की पूरी बात ध्यान से सुनें, बीच में रोकें।
  • 🗣️ बीच-बीच में प्रतिक्रिया दें – "जी", "हाँ बिल्कुल", "मैं समझ रहा हूँ"
  • संदेह होने पर विनम्रता से सवाल पूछें।
  • 🔁 बातचीत खत्म होने पर छोटा सारांश दोहराएँ – "तो आपका मतलब है कि…"
  • धैर्य रखें, जल्दीबाज़ी में निर्णय लें।

Don’ts (क्या करें)

  • 🚫 कॉल के दौरान मल्टीटास्किंग (मोबाइल स्क्रॉल करना, मेल टाइप करना)
  • 🚫 सामने वाले की बात पूरी होने से पहले बीच में रोकना।
  • 🚫 बैकग्राउंड शोर वाले स्थान पर कॉल करना।
  • 🚫 "हाँ-हाँ" कहकर टालना जबकि ध्यान कहीं और हो।
  • 🚫 सामने वाले की बात को हल्के में लेना या अनसुना करना।
  • 🚫 तुरंत निष्कर्ष पर पहुँच जाना बिना सब सुने।

🌟 एक लाइन याद रखने लायक

"फोन पर अच्छा श्रोता वही है, जो सामने वाले की आवाज़ के पीछे छिपी भावनाओं को भी सुन ले।"


 निष्कर्ष : 

सुनने की कला (Active Listening) केवल एक कौशल नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। जो व्यक्ति अच्छा श्रोता होता है, वह अच्छे रिश्ते बना पाता है, सही निर्णय लेता है और समाज में सम्मान पाता है।

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, जहां हर कोई बोलना चाहता है, वहीं वह व्यक्ति सफल है जो सुनना जानता है।

"अच्छा वक्ता वही है, जो पहले अच्छा श्रोता हो।"

टेलीफोन पर बातचीत में सक्रिय सुनने की कला (Active Listening) सबसे ज़रूरी गुण है। यह केवल संवाद को प्रभावी बनाती है, बल्कि रिश्तों में भरोसा, काम में सफलता और ग्राहक सेवा में संतोष भी लाती है।

याद रखिए

"फोन पर आपकी आवाज़, सामने वाले के लिए आपका चेहरा है। और आपकी सुनने की कला, आपके चरित्र का परिचय है।" 


Listening और Hearing में अंतर

हम रोज़मर्रा की जिंदगी में कई बार कहते हैं – "तुम मेरी बात सुन ही नहीं रहे!"

असल में यहाँ सुनने (Hearing) और ध्यानपूर्वक सुनने (Listening) में फर्क है।

दोनों शब्द देखने में एक जैसे लगते हैं, लेकिन इनके अर्थ, उद्देश्य और प्रभाव अलग हैं।


Hearing (सुनना) क्या है?

Hearing केवल ध्वनियों को कानों से ग्रहण करना है।

  • यह एक जैविक प्रक्रिया (Biological Process) है।
  • जब हमारे कान किसी ध्वनि तरंग को पकड़ते हैं, तो हम उसे सुन लेते हैं।
  • इसमें हमारी चेतना, भावनाएँ या समझ ज़रूरी नहीं होती।

👉 उदाहरण:

  • सड़क पर गाड़ियों का शोर सुनाई देना।
  • कमरे में बजता हुआ पंखा सुनना।
  • भीड़ में लोगों की आवाज़ सुनना।

इन ध्वनियों को हम सुन तो लेते हैं, लेकिन अक्सर उन पर ध्यान नहीं देते।


Listening (ध्यानपूर्वक सुनना) क्या है?

Listening केवल ध्वनि सुनना नहीं है, बल्कि उस ध्वनि या बात को समझना, उस पर ध्यान देना और अर्थ निकालना है।

  • यह एक मानसिक और भावनात्मक प्रक्रिया (Mental & Emotional Process) है।
  • इसमें ध्यान (Focus), समझ (Understanding) और प्रतिक्रिया (Response) शामिल है।

👉 उदाहरण:

  • बच्चा जब अपनी समस्या माता-पिता को बताता है और माता-पिता ध्यानपूर्वक सुनते हैं।
  • छात्र जब कक्षा में शिक्षक की व्याख्या सुनकर नोट्स बनाते हैं।
  • ग्राहक जब अपनी शिकायत बताता है और कस्टमर एजेंट ध्यान से सुनता है।

Hearing और Listening में मुख्य अंतर

पहलू

Hearing (सुनना)

Listening (ध्यानपूर्वक सुनना)

प्रक्रिया

केवल ध्वनि ग्रहण करना

ध्वनि को समझना और ग्रहण करना

स्वभाव

अनजाने में भी हो सकता है

जानबूझकर किया जाता है

ध्यान

ध्यान जरूरी नहीं

पूरा ध्यान जरूरी

भागीदारी

निष्क्रिय (Passive)

सक्रिय (Active)

उद्देश्य

केवल आवाज़ पाना

संदेश, अर्थ और भावना समझना

उदाहरण

सड़क पर हॉर्न सुनना

ट्रैफिक पुलिस की सीटी सुनकर रुकना


एक छोटी कहानी (फर्क समझाने के लिए)

एक बच्चा अपनी माँ से कह रहा था

"माँ, आज स्कूल में मुझे पुरस्कार मिला।"

लेकिन माँ रसोई में काम करते-करते बस "हम्मअच्छा" कहती रही।

यह Hearing थीउसने आवाज़ तो सुनी, लेकिन ध्यान से नहीं।

थोड़ी देर बाद माँ ने काम छोड़ा, बेटे के पास आई और बोली

"अरे वाह! कौन-सा पुरस्कार मिला? बताओ तो सही!"

अब माँ ने बेटे की बात को ध्यान से सुना और समझा। यह Listening थी।


In Sort : Hearing और Listening में यही बड़ा अंतर है

  • Hearing = केवल ध्वनि सुनना।
  • Listening = ध्यान से सुनकर समझना और महसूस करना।

हमारे रिश्तों, काम और जीवन में सफलता की कुंजी केवल Hearing में नहीं, बल्कि Listening में छिपी है।

"सच्चा संवाद तब होता है जब हम केवल कान से नहीं, दिल से भी सुनते हैं।"

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