चुप्पी और
मौन : एक कहानी के
माध्यम से समझना
प्रस्तावना
मनुष्य के जीवन में शब्दों का बहुत महत्व है। हम बोलते हैं, समझाते हैं, बहस करते हैं, खुशियाँ बाँटते हैं, और कभी-कभी गुस्से में झगड़ा भी कर बैठते हैं। लेकिन जब शब्द थक जाते हैं, तब चुप्पी और मौन जीवन के सबसे गहरे अध्याय खोलते हैं।
बहुत लोग चुप्पी और मौन को एक जैसा समझते हैं, लेकिन इन दोनों में गहरा अंतर है।
- चुप्पी अक्सर
बाहर की आवाज़
को रोकने का नाम है।
- मौन अंदर
की आवाज़ को शांत करने
की कला है।
इन्हीं दो शब्दों को समझाने के लिए आइए एक कहानी में चलते हैं…
कहानी : ऋषि
और व्यापारी की
मुलाकात
पहला
दृश्य – व्यापारी की
समस्या
बहुत समय पहले, एक नगर में अर्जुन नाम का व्यापारी रहता था। उसका व्यापार बहुत बड़ा था, धन-सम्पत्ति की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसका मन अशांत रहता था।
वह हमेशा बोलता रहता – नौकरों पर चिल्लाना, परिवार से बहस करना, बाजार में सौदागरों से उलझना – यह उसकी आदत बन चुकी थी।
एक दिन उसकी पत्नी ने कहा –
“तुम्हारे पास सब कुछ है, पर शांति नहीं। क्यों न तुम जंगल के उस ऋषि से मिलो, जिनके बारे में लोग कहते हैं कि उनके मौन से ही उत्तर मिल जाते हैं।”
अर्जुन को बात जमी। अगले ही दिन वह जंगल की ओर निकल पड़ा।
दूसरा दृश्य – ऋषि
का मौन
वह जब आश्रम पहुँचा तो देखा – एक वृद्ध ऋषि पीपल के नीचे ध्यान में बैठे हैं। उनके चारों ओर पक्षी चहचहा रहे थे, पर ऋषि बिल्कुल शांत थे।
अर्जुन ने उन्हें प्रणाम किया और कहा –
“गुरुदेव! मेरा मन हर वक्त बोलता रहता है। मैं चुप रहना चाहता हूँ पर रह नहीं पाता। मुझे मार्ग बताइए।”
ऋषि ने आँखें खोलीं, लेकिन कुछ बोले नहीं। बस मुस्कुराए और हाथ से इशारा किया कि पास बैठो।
कुछ समय बीत गया। अर्जुन बेचैन होकर बोला –
“आप क्यों नहीं बोलते? मैं आपके उत्तर का इंतजार कर रहा हूँ।”
ऋषि ने शांति से कहा –
“बेटा, यही तुम्हारी समस्या है। तुम उत्तर को
शब्दों में ढूँढते हो, पर उत्तर शब्दों से परे है।”
तीसरा दृश्य – चुप्पी और
मौन का भेद
अर्जुन ने पूछा – “तो क्या मुझे बोलना बंद कर देना चाहिए?”
ऋषि मुस्कुराए –
“नहीं। बोलना बुरा नहीं है। बिना कहे
जीवन नहीं चलता।
पर सुनो –
- जब तुम बाहर
के लोगों से नाराज़ होकर
चुप हो जाते
हो, वह चुप्पी है।
- जब तुम्हारे भीतर
का शोर थम जाता है, वह मौन है।”
फिर उन्होंने एक उदाहरण दिया –
“कल्पना करो, दो लोग झगड़ रहे हैं। उनमें से एक गुस्से में चुप हो जाए, पर भीतर क्रोध उबलता रहे – यह चुप्पी है।
लेकिन अगर कोई व्यक्ति भीतर से शांत होकर झगड़े को समझे और बिना प्रतिक्रिया
दिए मुस्कुराकर
छोड़ दे – यह मौन है।”
अर्जुन को थोड़ा समझ आया, पर अभी भी उलझन थी।
चौथा
दृश्य – मौन की
परीक्षा
ऋषि ने उसे तीन दिन आश्रम में रुकने को कहा।
पहले दिन, ऋषि ने अर्जुन को नियम दिया – “तुम बोल नहीं सकते।”
अर्जुन खुश हुआ – “बस इतनी सी बात? यह तो आसान है।”
पर जैसे ही दिन गुज़रा, उसे कठिनाई होने लगी।
- नौकर
ने भोजन देर से लाया,
अर्जुन चिल्लाना चाहता
था पर रोकना
पड़ा।
- किसी
साधु ने उससे
प्रश्न किया, वह उत्तर नहीं
दे पाया।
- मन में खीझ और झुंझलाहट भर गई।
उस रात अर्जुन सोचने लगा –
“यह कैसी साधना है? अंदर तो और ज्यादा शोर मचा है।”
दूसरे दिन ऋषि ने कहा –
“आज से तुम बोल सकते हो, पर केवल आवश्यक शब्द ही बोलना।”
अब अर्जुन का अनुभव अलग हुआ।
- उसने
देखा कि कम शब्दों में भी काम चल जाता
है।
- जहाँ
वह पहले दस वाक्य बोलता
था, अब सिर्फ
दो ही काफी
थे।
- मन थोड़ा हल्का
हुआ।
तीसरे दिन ऋषि बोले –
“अब न तो बोलने पर रोक है, न चुप रहने पर। पर हर काम शांति से करना।”
अर्जुन ने ध्यान दिया – जब वह भीतर से शांत था, तो शब्द अपने आप संयमित हो गए। वह गुस्सा नहीं कर पा रहा था। उसके मन का शोर कम हो गया था।
पाँचवाँ दृश्य – अंतर
का रहस्य
तीन दिन बाद अर्जुन ऋषि के चरणों में झुका और बोला –
“गुरुदेव, अब मैं समझ गया।
- चुप्पी तो केवल बाहरी
बोल रोकना है।
- मौन भीतर
के बोल रोकना
है।
चुप्पी में दबाव है, मौन में समाधान है।”
ऋषि ने आशीर्वाद दिया –
“याद रखो, जीवन में चुप्पी कभी-कभी आवश्यक है, लेकिन मौन हमेशा कल्याणकारी
है। चुप्पी से लोग हमें गलत समझ सकते हैं, पर मौन से हम स्वयं को सही समझने लगते हैं।”
अर्जुन लौटा तो उसका व्यवहार बदल चुका था।
परिवार हैरान था – वह अब पहले जैसा क्रोधी नहीं रहा।
धीरे-धीरे लोग कहने लगे –
“अर्जुन ने शायद धन से ज्यादा कीमती खजाना पा लिया है – मौन।”
दार्शनिक दृष्टिकोण : चुप्पी बनाम
मौन
- चुप्पी (Silence of tongue)
- यह बाहरी है।
- कई बार गुस्से या डर के कारण आती
है।
- इससे
भीतर का शोर
कम नहीं होता।
- जैसे
– परीक्षा में असफल
बच्चा माँ से कुछ न कहे, पर भीतर घुटता
रहे।
- मौन (Silence of mind)
- यह आंतरिक है।
- स्वेच्छा से आती है,
दबाव से नहीं।
- इसमें
विचार शांत हो जाते हैं,
आत्मा स्पष्ट दिखने
लगती है।
- जैसे
– महात्मा बुद्ध का मौन, जिसमें प्रश्न पूछने
पर भी उत्तर
एक मुस्कान होती
थी।
जीवन
में प्रयोग
- जब गुस्सा आए, तो चुप्पी
मत अपनाओ, बल्कि
मौन साधो। यानी
भीतर जाकर कारण
समझो।
- परिवार
में विवाद हो, तो चुप्पी
दूरी बढ़ाती है, लेकिन मौन से समाधान
मिलता है।
- काम के दबाव
में, कुछ देर मौन ध्यान
करने से ऊर्जा
लौट आती है।
निष्कर्ष
चुप्पी और मौन दोनों जरूरी हैं, लेकिन उनके प्रयोजन अलग हैं।
- चुप्पी परिस्थिति संभालने का साधन है।
- मौन आत्मा
को समझने का साधन है।
यदि हम केवल चुप्पी सीख लें, तो लोग हमें ‘गुमसुम’ कहेंगे।
पर यदि हम मौन साध लें, तो लोग हमें ‘गंभीर और ज्ञानी’ कहेंगे।
यही
अंतर है – चुप्पी हमें
अलग करती है,
मौन हमें जोड़ता है।